अर्थ, काम, देह सब नश्वर है|
रूह को छूने वाला ही इश्वर है||
वो अतुल है, पावन है, वो पृथक है|
उसका मर्म, उसका ही जीवन सार्थक है||
पृथ्वी और अम्बर का अजब नाता है|
रूह की गहरायी शायद दर्शाता है||
आत्म का अस्तित्व तू ही है|
खुशी, चंचलता, हर्ष रूही है||
रूह को छूने वाला ही इश्वर है||
वो अतुल है, पावन है, वो पृथक है|
उसका मर्म, उसका ही जीवन सार्थक है||
पृथ्वी और अम्बर का अजब नाता है|
रूह की गहरायी शायद दर्शाता है||
आत्म का अस्तित्व तू ही है|
खुशी, चंचलता, हर्ष रूही है||
तेरा हर लफ्ज़ ज़िन्दगी के नए मायने सिखाता है|
करुणामयी पलकों को जैसे प्रेम से सहलाता है||
सरलता, सुमति, सौंदर्य का तू संगम है|
माया से मुक्त, तू ही खुशी, तू ही ग़म है||
करुणामयी पलकों को जैसे प्रेम से सहलाता है||
सरलता, सुमति, सौंदर्य का तू संगम है|
माया से मुक्त, तू ही खुशी, तू ही ग़म है||
2 comments:
Padhke achha laga. Pehli pankti to bahut hi sundar hain.
Main khud bhi bahot dino se soch rahi hoon ki mera ek Bangla mein bhi blog hona chahiye.
Ye achha hai, wo to malum hai par kitna achha hai, wo malum nahin hai kyunki hum Hindi kamzor hain!Hindi kabhi padhte nahin hai na! Phir bhi, mujhe laga ki last stanza sabse achha hai...
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